Censor Board Certificates Explained in Hindi

The Central Board of Film Certification (CBFC), also known as the Censor Board, is a statutory censorship and classification body under the Ministry of Information and Broadcasting, Government of India. It is tasked with "regulating the public exhibition of films under the provisions of the Cinematograph Act 1952."

Censor Board Certificates Explained in Hindi

Censor Board Certificates Explained in Hindi : सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन यानि सीबीएफसी एक वैधानिक संस्था (legal Organization) है जो Ministry of Information and Broadcasting के under आती है. यह बोर्ड हमारे देश की फिल्मों को उसके कंटेंट के हिसाब से सर्टिफिकेट देने का काम करता है. ये सिनेमेटोग्राफी एक्ट 1952 के तहत आने वाले provisions के हिसाब से फिल्मों को रिलीज करने के लिए सर्टिफिकेट देने का काम करता है. हमारे देश में जितनी भी फिल्में बनती हैं, उन्हें रिलीज होने से पहले सेंसर बोर्ड से सर्टिफिकेट लेना पड़ता है.

सेंसर बोर्ड के डायरेक्टर और मेंबर्स को केंद्र सरकार appoint करती है. इसके मेंबर्स किसी भी सरकारी ओहदे पर नहीं होते. सेंसर बोर्ड का हेडक्वार्टर मुंबई में है और इसके 9 Regional office हैं, जोकि मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बैंगलूर, तिरुवनंतपुरम,  हैदराबाद,  नई दिल्ली, कटक और गुवहाटी में मौजूद है.

फिल्म को सर्टिफिकेट देने में कितना समय लगता है?: सेंसर बोर्ड किसी भी फिल्म के सर्टिफिकेशन में ज्यादा से ज्यादा 68 दिनों का वक्त ले सकता है. सबसे पहले फिल्म के आवेदन की जांच की जाती है, जिसमें लगभग एक हफ्ते का वक्त लगता है. उसके बाद फिल्म को Investigation Committee के पास भेजा जाता है, Investigation Committee 15 दिनों के अंदर इसे सेंसर बोर्ड डायरेक्टर के पास भेज देती है. डायरेक्टर फिल्म की जांच में अधिकतम 10 दिनों का वक्त ले सकता है. फिर सेंसर बोर्ड फिल्म के आवेदक को जरूरी कट्स के बारे में जानकारी देने और सर्टिफिकेट जारी करने में 36 दिनों का समय और ले सकता है.

फिल्म सर्टिफिकेट कितने टाइप के होते है?: फिल्म के कंटेंट के अनुसार सेंसर बोर्ड किसी फिल्म को 4 तरह के सर्टिफिकेट देता है.

  1. पहली कैटेगरी है (U) यानि यूनिवर्सल, ये कैटेगरी सभी audience के लिए है.
  2. दूसरी कैटेगरी है (U/A), इसके तहत 12 साल से कम उम्र के बच्चे माता पिती या किसी बड़े की देख रेख में ही फिल्म देख सकते हैं.
  3. तीसरी कैटेगरी (A) हैजो सिर्फ Adults के लिए है.
  4. चौथी और आखिरी कैटेगरी है (S),ये कैटेगरी किसी खास वर्ग के लोगों के लिए ही है, जैसे डॉक्टर, इंजीनियर या किसान वगैरह.

फिल्म सर्टिफिकेट कैसे मिलता है: सेंसर बोर्ड में फिल्म को पास या फेल करने के लिए 3 पैनल होते हैं. पहला पैनल Investigation Committee का होता है. इसमें 4 सदस्य होते हैं, जिनमें 2 महिलाओं का होना जरूरी है. ज्यादातर फिल्में इसी पैनल के जरिए पास कर दी जाती हैं. खास बात ये है कि इस पैनल में सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष शामिल नहीं होते हैं. Investigation Committee फिल्म देखती है और फिर सभी सदस्य लिखित में अपने सुझाव देते हैं कि फिल्म के किस सीन को काटना है और किसमें संशोधन करना है. इसके बाद समिति की रिपोर्ट अध्यक्ष को भेज दी जाती है.

दूसरा पैनल जिसे रिवाइजिंग कमेटी कहते हैं, फिल्म इस पैनल के पास तभी भेजी जाती है, जब Investigation Committee फिल्म को सर्टिफिकेट देने से इंकार कर दे. इस पैनल में अध्यक्ष के अलावा 9 सदस्य और हो सकते हैं. इस पैनल के सदस्यों की पहचान भी गुप्त रखी जाती है. इसमें वही सदस्य होते हैं जो पहले के पैनल में शामिल न हुए हों. अगर फिल्म निर्माता इस पैनल के दिए सुझावों को मानने से इंकार कर देता है तो ऐसे हालात में इस पैनल के पास ये अधिकार होता है कि ये फिल्म को पास करने से मना कर दें.

तीसरा पैनल है फिल्म सर्टिफिकेशन अपीलेट ट्रिब्यूनल (एफसीएटी). ये आखिरी पैनल होता है. इसमें फिल्म इंडस्ट्री के तजुर्बेकार मेंबर्स होते हैं. इसके अलावा इसमें सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज भी होते हैं. इस पैनल का गठन काफी सोच विचार के बाद किया जाता है. इसलिए यहां से सर्टिफिकेट हासिल करने में फिल्म को लगभग एक महीने का वक्त लग सकता है. अगर इस पैनल के जरिए भी फिल्म को पास नहीं किया जाता है तो ऐसे हालात में फिल्ममेकर के पास हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता है जिसमे काफी ज्यादा टाइम लगता है इसलिए अक्सर फिल्ममेकर जो भी सर्टिफिकेट सेंसर बोर्ड से मिलता है उसी को लेकर फिल्म को रिलीज़ कर देते है.